कानोड़-भीण्डर क्षेत्र के वननाकों पर बन रही हैं हर्बल गुलाल
"हर्बल गुलाल ने आदिवासी महिलाओं के लिए खोले रोजगार के रास्ते"
होली पर्व नजदीक आने के साथ ही बाजार में रंग-गुलाल की ब्रिकी शुरु हो गई। इस बीच वन विभाग ने पर्यावरण को अनुकूल रखने के लिए हर्बल गुलाल बनानी शुरु कर दी है। हर्बल गुलाल का निर्माण केवल उदयपुर शहर में ही नहीं रहकर ग्रामीण क्षेत्रों में वन विभाग के विभिन्न नाकों पर बनने लगी है। ग्रामीण क्षेत्रों में वन विभाग की प्रेरणा से वन समितियों के तहत महिलाओं को स्वरोजगार व आत्मनिर्भर बनाने के लिए हर्बल गुलाब बनाने का काम किया जा रहा है। हर्बल गुलाल प्राकृतिक रंगों से बनाई जाती है। इसमें किसी प्रकार का रासायनिक पदार्थों का उपयोग नहीं किया जाता है। जिससे त्वचा व आंखों को कोई नुकसान नहीं होता है। इस गुलाल की हर वर्ष मांग बढ़ती जा रही है। इसके चलते ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर बढ़ रहे है।
भीण्डर रेंज के क्षेत्रीय वन अधिकारी सोमेश्वर त्रिवेदी ने बताया कि वन सुरक्षा एवं प्रबंध समिति उपला सेमलिया नाका सेमलिया रेंज भीण्डर तथा आकोला वन सुरक्षा समिति नाका कानोड़ में महिला स्वयं सहायता समुह द्वारा हर्बल गुलाल बनाई जा रही है। जिसमें महिलाएं पेड़ की फुल-पत्तियों से हर्बल गुलाल बनाई जा रही है। बाजार में हर्बल गुलाल की अच्छी खासी मांग होने से महिलाओं के लिए स्वरोजगार के लिए अच्छा कदम उठाया जा रहा है। समिति द्वारा हर्बल गुलाल को पैकेट में पैक करके बाजार में विक्रय के लिए भेजा जा रहा है।
कैसे बनती हैं हर्बल गुलाल
फाल्गुन में खिलने वाले नए फुलों, पत्तियों के साथ हरी घास, पालक सहित विभिन्न प्राकृतिक पुष्पों को एकत्रित करके सुखाया जाता है। जिसके बाद इन सभी को गर्म पानी में उबाला जाता हैं जिससे इनका रस व रंग निकलता है। उसके बाद उसमें आरारोट पाउडर मिलाकर गोल बनाया जाता है। इस गोल को ठंडा करके जमाया जाता है। गोल के सुखने के बाद गांइडर मशीन द्वारा बारीक पीसा जाता है। इसके बाद महीन हर्बल गुलाल को पैकिंग करके बाजार में विक्रय के लिए भेज दिया जाता है। इसमें गुलाब से गुलाबी, पलाश से केसरिया, हरियाली से हरी, अमलताश से पीली, चुकन्दर से बैंगनी पर्पल गुलाल बनाई जाती है।
रिपोर्ट - जयदीप चौबीसा